| सारांश मानव समाज भले ही विकसित हो रहे हो मगर उसके इस विकास के इंजन ने पृथ्वी को इतना कलुषित कर दिया है कि अब सांस लेना भी मुश्किल हो गया। ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जलस्तर बढ़ रहा है। प्रकृति का ऋतुचक्र गड़बड़ा दिया है। धरती पर लगातार बढ़ रहे तापमान के स्तर को ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। पूरे विश्व में इंसानों की लापरवाही और निजी स्वार्थ से हमारी धरती की सतह दिनोंदिन गर्म होती जा रही है। ठंड के समय में पौधों को उगाने के लिए अक्सर ग्रीन हाउस का प्रयोग किया जाता है। यह हाउस एक ग्लास से घिरा होता है। ग्लास यह पेनल सूर्य की किरणों को अंदर तो आने देता है मगर अंदर के तापमान को बाहर न जाने तथा इससे ग्रीन हाउस अंदर से ठीक उसी तरह गर्म हो जाता है, जैसे बहुत देर तक धूप में खड़ी गाड़ी अंदर से गर्म हो जाती है। ग्रीन हाउस इफेक्ट जैसा होता है। कुछ नहीं तो धरती का औसत तापमान शून्य सेंटीग्रेड से नीचे होता एवं 1990 ईस्वी से 2000 के अंतराल में विश्वभर में लगभग 6 हजार लोगों की मृत्यु प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुई है। 2014 सबसे गर्म साल माना गया। जीवाश्म ईंधन का उपयोग करने पर उससे उत्पन्न कार्बन डाई आॅक्साइड से होने वाले वायु प्रदूषण में अमेरिका का सबसे बड़ा हाथ है। वैश्विक वायु प्रदूषण (जीवाश्म) में कुल 25 प्रतिशत वायु प्रदूषण अमेरिका ही करता है। विश्वभर में 40 प्रतिशत विद्युत उत्पादन कोयले के प्रयोग से ही होता है। ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए नवीन तथ्यों एवं तकनीकों के माध्यम से रोका जा सके, ऐसी प्रणाली विकसित करनी होगी। |